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आयुर्वेद में आहार विधि विधान (Ayurvedic Guidelines for Healthy Eating)
स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए आयुर्वेद में भोजन विधि का वर्णन किया गया है, जो निम्नलिखित है: उपरोक्त विधि से किया हुआ भोजन शरीर की धातुओं को पोषित करता है और बल, वर्ण, इंद्रिय को बढ़ाता है। भोजन करते समय निम्नलिखित तीन कार्यों का हमेशा त्याग करना चाहिए: त्रिनि अपि इतनि
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आयुर्वेद में आयु (The Concept of Lifespan in Ayurveda)
शरीर, इंद्रिय, मन और आत्मा के संयोग को ही आयु कहते हैं। आयु के प्रकार आयुर्वेद में आयु के ४ प्रकार बताए गए हैं: चिकित्सा में आयु का महत्व रोगी की चिकित्सा करने के पहले रोगी के आयु की परीक्षा कर लेनी चाहिए क्योंकि आयु का प्रमाण जान लेने से चिकित्सा करने से चिकित्सा की
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गण्डूष (Oil Pulling or Gargling Therapy)
“असंचारी मुखे पूर्णे” — औषधि की जो मात्रा केवल मुख में रखी जाय और उसको इधर-उधर घुमाया न जाए, वह “गण्डूष” होता है। “गण्डूष” का मतलब मुख को औषधि से पूरी तरह भर देना। गण्डूष के प्रकार आयुर्वेद ग्रंथों में गण्डूष के ४ प्रकार बताए गए हैं: नित्य सेवनीय गण्डूष: तिल तेल या मांस रस का उपयोग
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आयुर्वेदिक औषधि की प्रयोज्य मात्रा (Ayurvedic Drugs and Their Recommended Doses)
आयुर्वेद में औषधियों की सही मात्रा का विशेष महत्व होता है। प्रत्येक रोगी की व्यक्तिगत स्थिति, जैसे कि देश (स्थान), काल (मौसम), वय (आयु), और बल (शारीरिक क्षमता) के अनुसार खुराक का निर्धारण किया जाता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में कई औषधियों के लिए न्यूनतम और अधिकतम मात्रा का उल्लेख है, जो नीचे दी गई तालिका
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व्यायाम और उसकी उपयोगिता (Importance of Exercises in Ayurveda)
आयुर्वेद स्वस्थवृत्तचर्या में व्यायाम का बहुत ही महत्व है, आयुर्वेद के अग्रय द्रव्यों में से एक है व्यायाम। “जिस कार्य को करने से शरीर में थकावट उत्पन्न हो, उसको व्यायाम कहते हैं।”“शरीर की ऐसी चेष्टा जिसके कारण शरीर में स्थिरता आए और बल की वृद्धि हो, वो है व्यायाम।” व्यायाम करने की पहचान हम ऐसा
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यवक्षार का निर्माण एवं उसका चिकित्सा में प्रयोग (Preparation and Uses of Yavakshara in Ayurveda)
यवक्षार आयुर्वेद की एक दिव्य औषधि है, जिसका निर्माण निम्नलिखित विधि द्वारा किया जाता है: सबसे पहले यव (जौ) के पौधे को जलाकर उसकी राख बना ली जाती है। इस राख को एक बर्तन में रखकर उसकी मात्रा से 8 गुना पानी मिलाया जाता है। फिर इस मिश्रण को अच्छी तरह हाथों से मसल कर
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मूत्र परीक्षा (Urine Examination)
आयुर्वेद मतानुसार रोगी की अष्टविध परीक्षा में एक परीक्षा मूत्र परीक्षा है, जिसके द्वारा रोगी को किस दोष का रोग हुआ है और रोगी का रोग ठीक होगा या नहीं, यह पता चल जाता है। मूत्र संग्रह काल (Collection time of urine) जिस रोगी के मूत्र की परीक्षा करनी हो तो उसका मूत्र रात के
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आयुर्वेद में एकल औषधि (Diseases and Their Single Drug)
रोग के अनुकूल सिर्फ एक ही औषधि का उपयोग करना एकल औषधि कहलाता है। विभिन्न रोगों के लिए आयुर्वेद में दिए गए कुछ एकल औषधि निम्नलिखित हैं:
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ताम्बूल सेवन विधि (Proper Method for Consuming Betel Leaf)”
आयुर्वेद स्वस्थवृत्तचर्या में ताम्बूल सेवन का उल्लेख मिलता है। जब भी ताम्बूल (पान, Piper betle) का सेवन करें, तो इसे कंकोल (शीतल चीनी), कर्पूर निर्यास (कच्चा कपूर), जायफल, सुपारी, लौंग, खदिर, और इलायची के साथ सेवन करना चाहिए। ताम्बूल सेवन के लाभ ताम्बूल सेवन विधि किसे ताम्बूल का सेवन नहीं करना चाहिए ताम्बूल सेवन का
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विरुद्ध आहार (Dietetic Incompatibilities)
विरुद्ध आहार ऐसे आहार या औषध द्रव्य हैं जो शरीर की धातुओं और दोषों के विपरीत होते हैं। इनसे शरीर के दोषों में वृद्धि होती है, किंतु वे शरीर से बाहर नहीं निकल पाते। विरुद्ध आहार के उदाहरण विरुद्ध आहार के घटक आयुर्वेद में विरुद्ध आहार के कुल 18 घटक बताए गए हैं: विरुद्ध आहार









