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“मसूरिका” – Small Pox or Variola
हिंदी में… लोक भाषा में इसे ‘माता’, ‘चेचक’, ‘वसंत रोग’ भी कहा जाता है। शास्त्रीय वर्णन आचार्य चरक ने मसूरिका का वर्णन शोथ व्याधि के अंतर्गत किया है – ‘याः सर्व गात्रेषु मसूरमात्रा मसूरिकाः पित्तकफात प्रदिष्टाः’जिसका तात्पर्य है – पित्त और कफ दोष के कारण संपूर्ण शरीर में मसूर के दाने के समान पीडिकाओं का
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अम्लपित्त (Hyperacidity)
हिंदी में… आयुर्वेद में उल्लेख आयुर्वेद ग्रंथों में आचार्य काश्यप ने अम्लपित्त को सबसे पहले “शुक्तक” के नाम से वर्णित किया है।अम्लपित्त को एक स्वतंत्र अध्याय के रूप में आचार्य माधव ने उल्लेख किया है। विरुद्ध आहार, जैसे मछली और दुग्ध को एक साथ सेवन करना, अत्यधिक अम्ल (खट्टा) भोजन, अत्यधिक मसालेदार भोजन, मद्य, सिरका,
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आयुर्वेद शास्त्र अनुसार भोजन पात्र (Ayurvedic Guidelines for Food Vessels)
आहार (Food) पात्र (Vessel) १. यूष, पेया, मान्सरस रजत पात्र (Silver Vessel) २. शुष्क पदार्थ, दधि, दुग्ध स्वर्ण पात्र (Gold Vessel) ३. खली, कटवर, काम्बलीक कांस्य पात्र (Bronze Vessel) ४. राग, शुक्त वज्र, वैदूर्य पात्र (Diamond or Cat’s Eye Vessel) ५. घृत लौह पात्र (Iron Vessel) ६. शीतल जल ताम्र पात्र (Copper Vessel) ७. पानीय
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स्नायुक रोग (नहरुआ) (Snayuka Roga)
हिंदी में… स्नायुक रोग का सर्वप्रथम वर्णन वृन्द माधव (9वीं शताब्दी) एवं वांगसेन संहिता (12वीं शताब्दी) में मिलता है।स्नायुक निदान के नाम से एक स्वतंत्र अध्याय के रूप में वर्णन योगरत्नाकर (17वीं शताब्दी) में मिलता है। स्नायुक रोग के नाम स्नायुक रोग की उत्पत्ति का कारण व लक्षण “शाखासु कुपिता दोषा: शोथम कृत्वा विसर्पवत” स्नायुक
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जलौका विधि (Leech Therapy in Ayurveda)
हिंदी में… आचार्य सुश्रुत के 14 अनुशस्त्र में जलोका को श्रेष्ठ माना गया है।(“जलोका अनु शस्त्रानाम्” – चरक सूत्र 25) राजा, सुकुमार, बालक, वृद्ध, जिसको शस्त्र से डर लगे, ऐसे लोगों में रक्तमोक्षण करने के लिए जलोका को सबसे ज्यादा उपयोगी एवं रक्तमोक्षण की मृदु विधि माना गया है। जलोका के प्रकार सुश्रुत संहिता में
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नाड़ी परीक्षा (Pulse Diagnosis)
हिंदी में… नाड़ी परीक्षा का सबसे पहले वर्णन आयुर्वेद के १३ वीं शताब्दी का ग्रन्थ शारंगधर संहिता में मिलता है। “करस्य अंगुष्ठ मूल या धमनी जीवसाक्षिणी”_ हाथ के अंगूठे के मूल में जो धमनी चलती है उसी को पकड़ कर वैद्य रोगी के सुख दुःख का ज्ञान करता है। आचार्य योग रत्नाकर ने त्रिविध नाड़ी
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मेद रोग (अतिस्थूलता – Obesity)
हिंदी में… आयुर्वेद में आठ निंदनीय पुरुषों का उल्लेख किया गया है, जिनमें से एक है अतिस्थूल व्यक्ति। अतिस्थूलता के कारण इन कारणों से मेद धातु (वसा) बढ़ जाती है और शरीर के सभी स्रोतसों (नलिकाओं) को अवरुद्ध कर देती है। परिणामस्वरूप वायु का प्रवाह बाधित हो जाता है। बढ़ी हुई वायु पाचन अग्नि को
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जलपान विधि विधान (The Ayurvedic Guide to Drinking Water)
हिंदी में… जल पीना भी आयुर्वेद स्वस्थवृत्तचर्या में महत्वपूर्ण भूमिका रखता है।पानी पीने को स्वस्थवृत्तचर्या में उषापान की संज्ञा दी गई है। उषापान का तात्पर्य रात्रि का अंधकार समाप्त होने के बाद और सूर्योदय से पूर्व किए गए जल के सेवन से है। उषापान के अंतर्गत: इस नियम से जल पीने से रोग मुक्त होते
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“आमलकी” (आंवला, Emblica Officinalis, Indian Gooseberry)
“आमलकी वय: स्थापनानाम्” वय (उम्र) को स्थिर रखने वाले द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। आंवला आयुर्वेद में वर्णित बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि है। यदि नियमित आंवले का सेवन किया जाए तो यह बढ़ती उम्र से संबंधित समस्याओं को दूर करता है। आचार्य प्रियव्रत शर्मा जी ने अपनी पुस्तक द्रव्य गुण सूत्रम में आंवले को
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आयुर्वेद में अनुपान (Anupan in Ayurveda)
अनुपान:अनु सह पश्चाद् वा पियते इति अनुपानमजो द्रव्य, आहार या औषधि के साथ या आहार, औषधि सेवन के बाद दिया जाता है, उसे अनुपान कहते हैं। “यथा जल गतम तेलं क्षणेंन प्रसरप्यती, तथा भैषज्यम अंगेषु प्रसरप्यती अनुपानतः।”जिस प्रकार पानी में तेल डालने पर वह शीघ्रता से फैल जाता है, उसी प्रकार अनुपान देने पर औषधि









