स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए आयुर्वेद में भोजन विधि का वर्णन किया गया है, जो निम्नलिखित है:
- उष्ण आहार का सेवन
मनुष्य को गरम भोजन का सेवन करना चाहिए। गरम खाने से उदर की अग्नि बढ़ जाती है, जिससे आहार शीघ्रता से पच जाता है और भोजन करते समय जो कफ कुपित होता है, आहार की उष्णता से उसका शोषण भी हो जाता है। - स्निग्ध आहार का सेवन
जब भी भोजन करें, उसमें स्नेह (तेल, घी) होना चाहिए, क्योंकि उदर की दुर्बल अग्नि को दीप्त करने का काम स्नेह करता है। अग्नि दीप्त होगी तो आहार का पाचन शीघ्र होगा और स्नेह युक्त आहार बल, वर्ण को बढ़ाने का काम करता है। - मात्रा पूर्वक आहार का सेवन
न बहुत ज्यादा और न ही बहुत कम भोजन करना चाहिए। ऐसा भोजन करने से आहार शरीर को किसी भी तरह की पीड़ा नहीं देता है और शारीरिक दोषों को भी बढ़ाता है। - पहले का किया हुआ भोजन पच जाने पर ही दूसरा भोजन करें।
- विरुद्ध आहार का सेवन नहीं करना चाहिए
जैसे मछली और दूध को एक साथ सेवन नहीं करना चाहिए। - मन के अनुकूल स्थान पर बैठकर ही आहार का सेवन करें
क्योंकि मन के लिए जो प्रिय होता है, वही हमारे शरीर के लिए पथ्य का कार्य करता है। यदि ऐसा नहीं करेंगे तो मन पर आघात होने से मानसिक रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। - बहुत जल्दी जल्दी भोजन नहीं करना चाहिए
क्योंकि ऐसा करने से आहार ऊपर की ओर चला जाता है और आमाशय में न रुकने के कारण आहार के गुण की प्राप्ति नहीं होती है। - बहुत धीरे धीरे भोजन नहीं करना चाहिए
ऐसा करने से भोजन की तृप्ति नहीं होती और हम जरूरत से ज्यादा भोजन कर लेते हैं, जिससे अतिमात्रा आहार के दोष उत्पन्न हो जाते हैं। - मन लगाकर ही भोजन सेवन करना चाहिए
ऐसा करने से आहार के गुणों की प्राप्ति होती है। - अपनी आत्मशक्ति के हिसाब से ही भोजन करें
जो आहार हितकारी हो, उसी का सेवन करें। जिस आहार को देखकर लगे कि उसका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होगा, उसका सेवन नहीं करना चाहिए।
उपरोक्त विधि से किया हुआ भोजन शरीर की धातुओं को पोषित करता है और बल, वर्ण, इंद्रिय को बढ़ाता है।
भोजन करते समय निम्नलिखित तीन कार्यों का हमेशा त्याग करना चाहिए:
त्रिनि अपि इतनि मृत्यु वा घोरान व्याधि उप सृजन्ति
A) समशन
कभी भी पथ्य और अपथ्य आहार को एक साथ मिलाकर सेवन नहीं करना चाहिए। जैसे दूध में पथ्य गाय का दूध और अपथ्य में भेड़ का दूध, इन दोनों को एक साथ मिलाकर सेवन नहीं करना चाहिए।
B) अध्यशन
पूर्व का भोजन अच्छी तरह से न पचा हो और उसी समय दूसरा भोजन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से पूर्व के भोजन का रस और वर्तमान के भोजन का रस आपस में मिलकर सभी दोषों को कुपित कर देता है।
C) विषमाशन
भोजन करने का काल हो, उसके पहले या बाद में भोजन सेवन नहीं करना चाहिए, या फिर विषम मात्रा में भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।

Leave a reply to casuallyoriginal2f5b280a69 Cancel reply