शरीर, इंद्रिय, मन और आत्मा के संयोग को ही आयु कहते हैं।

  • “धारि” – शरीर का धारण करने के कारण धारि पर्याय है।
  • “जीवित” – प्राण का धारण करने के कारण जीवित पर्याय है।
  • “नित्यग” – प्रतिदिन आगे बढ़ने के कारण नित्यग पर्याय है।
  • “अनुबंध” – प्राण के साथ हमेशा लगे रहने के कारण अनुबंध पर्याय है।
  • “चेतना अनुवृत्ति” – गर्भ बनने से लेकर मृत्यु तक आत्मा के साथ संयोग बने रहने के कारण चेतन अनुवृत्ति पर्याय है।

आयु के प्रकार


आयुर्वेद में आयु के ४ प्रकार बताए गए हैं:

  1. सुखायु
    यह आयु स्वयं के लिए होती है, शारीरिक मानसिक रोग न हो, ज्ञान विज्ञान, बल वीर्य, यश पराक्रम, इंद्रिय स्मृति मेधा युक्त हो, युवा हो, संपत्तिवान हो, ऐसी आयु सुखायु होती है।
  2. दुखायु
    यह आयु भी स्वयं के लिए होती है किन्तु सुखायु के विपरीत गुण युक्त हो।
  3. हितायु
    यह आयु समाज के लिए होती है, दूसरों की भलाई करने वाला हो, धर्म कर्म करने वाला हो, वृद्ध गुरु सबका सम्मान करने वाला हो, राग द्वेष मोह से युक्त न हो, सबके लिए अहिंसा का व्यवहार हो, दान ध्यान तप करने वाला हो, ऐसी आयु हितायु होती है।
  4. अहितायु
    हितायु के विपरीत गुण युक्त अहितायु होती है।

चिकित्सा में आयु का महत्व


रोगी की चिकित्सा करने के पहले रोगी के आयु की परीक्षा कर लेनी चाहिए क्योंकि आयु का प्रमाण जान लेने से चिकित्सा करने से चिकित्सा की सफलता का अंदाजा लगा सकते हैं।

  • A) दीर्घायु के लक्षण
    • शरीर की सन्धियां, सिरा स्नायु सब मांस से ढके हों, इन्द्रियां स्थिर हों, किसी भी रोग से पीड़ित न हो, ज्ञान विज्ञान धीरे धीरे बढ़ रहे हों, शरीर के अंग प्रत्यंग सभी सम्यक रूप से हों।
  • B) मध्यम आयु के लक्षण
    • आंख के नीचे २-३ रेखाएं दिखाई दे, पैर और कान मांसल हों, नाक ऊपर की ओर उठी हो, पीठ पर ऊपर की ओर रेखाएं हों।
  • C) अल्प आयु के लक्षण
    • जिसकी उंगलियां छोटी हों, हंसते समय या बात करते समय दांत के मसूड़े दिखाई दें, कान अपने स्थान से ऊपर की ओर उठे हों।

विभिन्न कार्यों के लिए योग्य आयु


  1. विवाह योग्य आयु
    • सुश्रुत संहिता ( स्त्री १२ वर्ष, पुरुष २५ वर्ष)
    • अष्टांग संग्रह (स्त्री १२ वर्ष, पुरुष २१ वर्ष)
  2. व्यवाय योग्य आयु
    • चरक संहिता (१६-७० वर्ष)
    • सुश्रुत संहिता (२५-८० वर्ष)
    • वागभट्ट संहिता (२०-८० वर्ष)
    • शारंगधर (२० वर्ष)
    • क्षेम कोतूहल (१६ वर्ष)
  3. सम्यक वीर्यता
    • सुश्रुत संहिता (स्त्री १६ वर्ष, पुरुष २५ वर्ष)
    • अष्टांग हृदय (स्त्री १६ वर्ष, पुरुष २० वर्ष)
    • काश्यप संहिता (स्त्री पुरुष दोनों १६ वर्ष में समान वीर्य वाले होते हैं)
  4. नस्य व विष उपविष सेवन योग्य आयु (८-८० वर्ष)
  5. धूमपान सेवन योग्य आयु
    • शारंगधर (१२-८० वर्ष)
    • वागभट्ट (१८-८० वर्ष)
  6. शिरावेध योग्य आयु (१६-७० वर्ष)
  7. वमन विरेचन योग्य आयु
    • वागभट्ट (१०-७० वर्ष)
    • शारंगधर (१६ वर्ष)
  8. वस्ति योग्य आयु
    • जन्म से – गार्गय
    • १ माह – माथर
    • ४ माह – आत्रेय
    • ३ वर्ष – पाराशर
    • ६वर्ष – भेल
  9. सर्वोत्तम आयु हारित अनुसार
    • २४-३७ वर्ष स्त्री के लिए है और पुरुष के लिए २५-५० वर्ष होता है।

2 responses to “आयुर्वेद में आयु (The Concept of Lifespan in Ayurveda)”

  1. casuallyoriginal2f5b280a69 Avatar
    casuallyoriginal2f5b280a69

    great👌🏻👌🏻

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    1. Roma Tamrakar Avatar
      Roma Tamrakar

      sir bahut badhiya compilation

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