“असंचारी मुखे पूर्णे” — औषधि की जो मात्रा केवल मुख में रखी जाय और उसको इधर-उधर घुमाया न जाए, वह “गण्डूष” होता है।
“गण्डूष” का मतलब मुख को औषधि से पूरी तरह भर देना।
गण्डूष के प्रकार
आयुर्वेद ग्रंथों में गण्डूष के ४ प्रकार बताए गए हैं:
- स्नेहन गण्डूष
तेल, घी, मांस रस, तिल कल्क, जल या दूध के द्वारा जो मुख में धारण किया जाता है, उसे स्नेहन गण्डूष कहते हैं। इसके द्वारा वातज रोग नष्ट होते हैं। - शमन गण्डूष
इसके पर्याय स्तंभन, प्रसादन और निर्वापण भी हैं। तिक्त, कषाय, मधुर (तीखा, कसैला, मीठा) रस वाली औषधि के काढ़े, चीनी शरबत, मधु, क्षीर, ईख का रस आदि से जो मुख में धारण किया जाता है, उसे शमन गण्डूष कहते हैं। इसके द्वारा पित्तज रोग नष्ट होते हैं। - शोधन गण्डूष
कटु (कड़वा), अम्ल (खट्टा), लवण रस वाली औषधि, सिरका, मद्य, गोमूत्र आदि से जो मुख में धारण किया जाता है, उसे शोधन गण्डूष कहते हैं। इसके द्वारा कफज रोग नष्ट होते हैं। - रोपण गण्डूष
कषाय, मधुर और शीतल औषधि से जो मुख में धारण किया जाता है, उसे रोपण गण्डूष कहते हैं। इसके द्वारा मुख के अंदर के घाव ठीक होते हैं।
नित्य सेवनीय गण्डूष: तिल तेल या मांस रस का उपयोग किया जा सकता है।
गण्डूष धारण की विधि
जब तक आंख और नाक से स्राव न होने लगे, और मुख से कफ पिघलकर औषधि के गुण को नष्ट न कर दे, तब तक मुख में औषधि को धारण करना चाहिए।
गण्डूष की मात्रा
गण्डूष की तीन प्रकार की मात्रा होती है:
- उत्तम: मुख १/२ औषधि से भरा रहे।
- मध्यम: मुख १/३ औषधि से भरा रहे।
- हीन: मुख १/४ औषधि से भरा रहे।
रोगानुसार गण्डूष धारण
- दांतों में झनझनाहट या हिलने पर: गरम पानी या तिल कल्क का गण्डूष धारण करना चाहिए।
- मुख में जलन, घाव या क्षार अग्नि से जलने पर: दूध या घी का गण्डूष धारण करना चाहिए।
- प्यास लगने पर: शहद का गण्डूष धारण करना चाहिए।
- मुख से दुर्गंध आने पर: खट्टा द्रव युक्त आहार का गण्डूष धारण करना चाहिए।
गण्डूष धारण से लाभ
- हनु (जॉ) की अस्थियां ताकतवर होंगी।
- आवाज में बल मिलेगा।
- चेहरे पर मांस की वृद्धि होगी।
- दांत नहीं गिरेंगे, बल्कि अधिक मजबूत होंगे।
- जीभ साफ रहेगी, जिससे भोजन में रुचि बढ़ेगी।
नोट: 5 वर्ष की आयु के बाद किसी को भी उपरोक्त रोगों के अनुसार गण्डूष चिकित्सा दी जा सकती है।

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