“आमलकी वय: स्थापनानाम्”
वय (उम्र) को स्थिर रखने वाले द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। आंवला आयुर्वेद में वर्णित बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि है। यदि नियमित आंवले का सेवन किया जाए तो यह बढ़ती उम्र से संबंधित समस्याओं को दूर करता है।
आचार्य प्रियव्रत शर्मा जी ने अपनी पुस्तक द्रव्य गुण सूत्रम में आंवले को रसायन द्रव्यों में श्रेष्ठ माना है। रसायन वह औषधि होती है जो बुढ़ापा और व्याधि दोनों को दूर करे।
आमलकी के गुण कर्म
- आंवला में लवण रस को छोड़कर बाकी के सभी ५ रस (मधुर, अम्ल, कटु, तिक्त, कषाय) पाए जाते हैं।
- अम्ल रस होने के कारण वात दोष का शमन करता है।
- शीत और मधुर होने के कारण पित्त दोष शामक होता है।
- रूक्ष और कषाय होने के कारण कफ दोष शामक होता है।
इस प्रकार, एक आंवला तीनों दोषों (वात, पित्त, कफ) को शांत करने में समर्थ होता है।
- आचार्य वागभट्ट ने आंवले को प्रमेह रोग (Diabetes) की एकल औषधि (Single Drug) कहा है।
- कंठ (गला) के रोग में आंवले का रस अत्यंत हितकर होता है।
- विबंध (Chronic Constipation) में आंवले के रस में मिश्री मिलाकर खाने में आराम मिलता है।
- मूत्र (Urine) रुकने पर आंवले का लेप बनाकर नाभि के नीचे लगाने से आराम मिलता है।
- आंखों में सूजन होने पर आंवले का रस निकालकर आंखें धोने से सूजन कम हो जाती है।
चरक संहिता में “केवल आमलक रसायन”
आयुर्वेद के चरक संहिता ग्रंथ में “केवल आमलक रसायन” का वर्णन है।
इस रसायन की विशेषता यह है कि:
- यदि एक वर्ष तक गायों के बीच रहकर गाय का दूध सेवन करें और इसके अलावा अन्य किसी भी आहार का सेवन न करें।
- एक साल बीतने के बाद आंवले के पेड़ से स्वयं हाथ से तोड़कर यदि भर पेट आंवला खाया जाए, तो मनुष्य के ऊपर लक्ष्मी और सरस्वती जी का आशीर्वाद बन जाता है।
यह तो केवल आमलक रसायन की फल श्रुति है। किंतु इसकी सिद्धि भी है कि यदि नियमित रूप से आंवले का सेवन किया जाए, तो स्मृति, मेधा, और कांति बढ़ती है, जो कि लक्ष्मी और सरस्वती जी का द्योतक है।
आयुर्वेद में आमलकी स्नान का महत्व
आयुर्वेद स्वस्थवृत्तचर्या में नित्य आमलकी स्नान का विधान है।
- जो मनुष्य नित्य आंवला मिले हुए जल से स्नान करता है, उसके शरीर में झुर्रियां नहीं पड़ती हैं।
- उसके बाल असमय सफेद नहीं होते हैं।

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