पाण्डु व्याधि (अनीमिया) का कारण वात और पित्त दोष होते हैं। इस रोग में रोगी की त्वचा पाण्डु वर्ण (थोड़ी सफेद और थोड़ी पीली), हरिद्रा (हल्दी) या फिर हरे रंग की हो जाती है। इसके कुछ अन्य सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं:
- “शिशिर द्वेषी” – ठंडी चीजों से दूर रहना
- “शून अक्षि कूट” – आंखों के चारों तरफ सूजन होना
- “निद्रालु” – अत्यधिक नींद आना
- “अल्प वाक्” – बहुत कम बोलना
- पैरों के calf muscles में ऐंठन होना
- बार-बार थूकना
- सीढ़ी चढ़ते समय थकान महसूस होना
- “हतप्रभा” – शरीर की चमक खत्म होना
- कान में आवाज सुनाई देना
ये सभी लक्षण पाण्डु व्याधि में देखे जाते हैं, जिनकी पहचान से रोग की गंभीरता समझी जा सकती है।
पाण्डु रोग के पूर्वरूप लक्षण (Prodromal Symptoms of Anemia)
किसी भी रोग के उत्पन्न होने के पहले के लक्षणों को पूर्वरूप कहते हैं, पूर्व के लक्षणों को देखकर बताया जा सकता है कि भविष्य में कौन सा रोग होगा।
“भावी व्याधि प्रबोधकम्”।
जैसे पाण्डु (Anemia) के पूर्वरूप:
- हृदस्पंदन (Palpitations): जब हृदय की धड़कन खुद को सुनाई देने लगे।
- रूक्ष: शरीर का रुखा होना।
- स्वेद अभाव: पसीना कम आना।
- श्रम: शरीर में थकान होना।
इसके अलावा और भी लक्षण हैं जैसे: त्वचा का फटना, मल मूत्र का पीला होना, आंखों के चारों तरफ सूजन होना, मिट्टी खाना या मिट्टी खाने की इच्छा होना।
उपरोक्त लक्षणों के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है कि आगे चलकर पाण्डु (Anemia) रोग हो जायेगा।

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