आयुर्वेद स्वस्थवृत्तचर्या में अभ्यंग की उपादेयता यह है कि
अभ्यंग च चिरे नित्यम जरा श्रम वातहा
यदि नित्य तेल के द्वारा शरीर में अभ्यंग किया जाए तो जरा (बुढ़ापा) नहीं आती, श्रम (थकावट) दूर होता है और वातज रोगों का नाश होता है।
शरीर में बल और स्निग्धता के लिए “तिल तेल” को श्रेष्ठ कहा गया है।
सुख स्पर्श उपचित अंग, बलवान प्रिय दर्शन:
अभ्यंग करने से शरीर की धातुओं का पोषण होता है और शरीर के बाह्य मलों का भी नाश होता है।
स्थान अनुसार अभ्यंग से लाभ
- मूर्धनि (शिर) अभ्यंग से कर्ण (कान) में शीतलता आती है।
- कर्ण अभ्यंग से पैरों में शीतलता आती है।
- पैर अभ्यंग से नेत्र रोग नष्ट होते हैं।
- नेत्र अभ्यंग से दंत रोग नष्ट होते हैं।
अभ्यंग का निषेध (किसको अभ्यंग नहीं करना चाहिए)
- कफ रोगी
- नया ज्वर (बुखार)
- अजीर्ण का रोगी

Leave a comment