आयुर्वेद में कर्ण पूरण का अपनी दिनचर्या (healthy daily routine) एवं चिकित्सा में बहुत महत्व है।

दिनचर्या में नित्य कर्ण पूरण करना चाहिए

नित्य कर्ण पूरण के लिए “कटु तेल” (सरसों का तेल) को हमारे आयुर्वेद में श्रेष्ठ कहा गया है।

अगर हम नित्य कर्ण पूरण करते हैं, तो निम्नलिखित समस्याओं से बचा जा सकता है:

  • “न मन्या हनुसंग्रह” – (Cervical spondylosis)
  • “न कर्ण रोगा वातज” – (कान में किसी आवाज का सुनाई देना, Tinnitus)
  • “बाधिर्य” – (बहरापन)

चिकित्सा में कर्ण पूरण का महत्व

कर्ण पूरण चिकित्सा में निम्नलिखित रोगों को शांत करने में सहायक है:

  • “कर्ण कंठ शिरोगदे नाश्यति”
    (कान, कंठ, और सिर के रोग शांत होंगे)

कर्ण पूरण विधि

कर्ण पूरण करते समय, अगर चिकित्सा की दृष्टि से तेल डाल रहे हैं, तो निम्नलिखित मात्रा का ध्यान रखें:

  • कर्णरोग (कान के रोग) के लिए: 100 मात्रा तक तेल डालना।
  • कंठरोग (गले के रोग) के लिए: 500 मात्रा तक तेल डालना।
  • शिरोरोग (सिर के रोग) के लिए: 1000 मात्रा तक तेल डालना।

मात्रा कैसे मापें?

मात्रा के निर्धारण के लिए आप अपने घुटने (knee joint) को अपने हाथ से घुमाएं और एक चुटकी बजाएं, यही “एक मात्रा” कहलाती है।

कर्ण पूरण करने का समय

  • रस या मूत्र से कर्ण पूरण: प्रातः काल
  • तेल या घी से कर्ण पूरण: सूर्यास्त के बाद

One response to “कर्ण पूरण (Ear Filling)”

  1. Vibha Tiwari Avatar
    Vibha Tiwari

    Your advice is very helpful for health… please continue sharing it 🙏🏻🙂

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