इसको हरड़ा या हर्रे भी बोल सकते हैं।
हमारे आयुर्वेद में हरितकी को ‘माता’ कहा गया है।
हरितकी मनुष्याणां मातेव-हितकारिणी
हरितकी माता की तरह अपने बच्चों का ध्यान रखती हैं, कैसे ध्यान रखती हैं,
चर्विता वर्धयति अग्नि = चबा के खायेंगे तो अग्नि (भूख) बढ़ेगी।
पेषिता मलशोधनी = पीसकर खायेंगे तो कोष्ठ (पेट) का मल आसानी से बाहर हो जायेगा।
स्विन्ना संग्रहणी = उबालकर खायेंगे तो रोक देगी (जैसे अतिसार = loose motion, अर्श स्रावी = खासी, bleeding piles, ज्वर = high-grade fever)
भृष्टा त्रिदोषनुत = सभी दोषज रोग शांत होंगे।

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