आहार – इसका तात्पर्य वो ऐसी वस्तु जिसको हमारे कोष्ठ (उदर पेट) की अग्नि फ्चा दे। और उसके पचने से हमारी सात धातुओं की वृद्धि हो ।
आहार द्रव्य प्रभाव, प्रयोग, गुण, रस इत्यादि भेद से अनेक होते हैं लेकिन मुख्यतया गुरु एवं लघु आहार होते हैं जिनको कोष्ठाग्नि बताती है।
अगर जो आहार देर से पचे वो (गुरु),और जो आहार अपने पाचन काल (4 याम = 12 घंटे) में पचे वो (लघु)।
अग्नि का ज्ञान कैसे हो – आपके भोजन करने की मात्रा एवं एवं भोजन पचाने की मात्रा!
आहार मात्रा अग्निबलापेक्षिणी
हमें मात्रा का ध्यान रखना पड़ेगा क्योंकि हमारी कोष्ठ की अग्नि,आहार मात्रा की अपेक्षा रखती है।
गुरु द्रव्य के ग्रहण नियम- त्रिभाग सौहित्यम अर्ध सौहित्यम वा“
लघु द्रव्य – नातिसौहित्यम अग्ने युक्तित्यर्थम् ।।
सौहित्यम – जितना सहन कर सके ‘अग्नि’
आहार द्रव्य – “मात्रोपेक्षी” (मात्रा की अपेक्षा)
यदि ‘गुरु आहार’ को अल्प मात्रा में लेंगे तो उनका स्वभाव ‘लघु आहार’ होगा ।
यदि ‘लघु आहार’ को अति में लेंगे तो उनका स्वभाव ‘गुरु आहार’ होगा ।।
सामान्य/उदाहरण = माष = उड़द = गुरु
मुद्ग = मूंग = लघु

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